3 साल की वियाना जैन द्वारा संथारा (Santhara)व्रत लेने की कहानी ने पूरे देश को भावुक कर दिया। उस मासूम बच्ची की आध्यात्मिक यात्रा, संथारा की परंपरा, और उसके परिवार की आस्था व त्याग के मतलब किया हे ।
वियाना जैन कौन थी?
मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली वियाना जैन केवल 3 साल की थी, लेकिन उसकी परवरिश गहरे जैन संस्कारों से हुई थी। उसके माता-पिता, पियूष और वर्षा जैन, दोनों आईटी क्षेत्र में कार्यरत हैं। बचपन से ही वियाना पशु-पक्षियों को दाना डालती थी,
गोशाला जाती थी और रोज पचक्खान बोलती थी। दिसंबर 2024 में उसे ब्रेन ट्यूमर हुआ, जिसका इलाज मुंबई में किया गया। थोड़े समय के लिए स्वास्थ्य में सुधार हुआ, लेकिन मार्च 2025 में हालत बिगड़ गई। इसी दौरान संथारा(santhara ) व्रत का निर्णय लिया गया, जिसने उसकी छोटी-सी जीवन यात्रा को आध्यात्मिक ऊंचाई दे दी।
Santhara क्या है?
संथारा (Santhara) जैन धर्म का एक पवित्र व्रत है, जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे उपवास करते हुए मृत्यु को स्वेच्छा से स्वीकार करता है। यह आत्महत्या नहीं मानी जाती, बल्कि आत्मशुद्धि का मार्ग है। जब जीवन शरीर की सीमाओं से परे हो जाए, या जब कोई व्यक्ति आध्यात्मिक पूर्णता को प्राप्त कर ले, तब संथारा लिया जाता है।
रत्नकरण्ड श्रावकाचार जैसे प्राचीन ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है। यह व्रत साधु-साध्वियों और आस्थावान गृहस्थों द्वारा लिया जाता है। वियाना जैन द्वारा लिए गए संथारा ने इस परंपरा को एक नई दृष्टि से देखने को मजबूर कर दिया।
]कैसे santhara व्रत लिया गया?
21 मार्च 2025 को, वियाना जैन ने केवल 3 वर्ष, 4 महीने और 1 दिन की उम्र में संथारा (santhara) लिया। यह निर्णय उसके आध्यात्मिक गुरु राजेश मुनि महाराज के मार्गदर्शन में हुआ।
वियाना के माता-पिता को गुरुजी ने बताया कि बच्ची अगली सुबह नहीं देख पाएगी। ऐसे में उन्होंने उसे संथारा दिलाने का फैसला लिया। यह व्रत लगभग 30 मिनट चला और इसके ठीक 10 मिनट बाद वियाना ने शांति से शरीर त्याग दिया। यह घटना संथारा परंपरा में एक ऐतिहासिक क्षण बन गई।
जैन परिवार की आस्था और दर्द
पियूष और वर्षा जैन ने अपनी इकलौती बेटी को खोने का अत्यंत पीड़ादायक निर्णय संथारा (santhara)के माध्यम से लिया। यह उनके लिए केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि उनके विश्वास की चरम अभिव्यक्ति थी। पियूष ने कहा कि उन्हें मानसिक शांति मिली,
जबकि वर्षा ने अपनी पीड़ा को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकीं। उनका मानना था कि संथारा ने वियाना को एक शांतिपूर्ण विदाई दी, जो शायद किसी भी चिकित्सा पद्धति से संभव नहीं थी। संथारा यहां केवल एक व्रत नहीं, बल्कि आस्था और त्याग की मिसाल बन गया।
वियाना के संथारा लेने के बाद किया पड़ा असर
वियाना जैन के संथारा( santhara) ने न केवल जैन समाज, बल्कि पूरे भारत में एक गहरी छाप छोड़ी। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में उनका नाम सबसे छोटी उम्र में संथारा लेने वाली के रूप में दर्ज हुआ।
हालांकि कुछ लोगों ने इस परंपरा की आलोचना भी की, पर अधिकतर लोगों ने परिवार की आस्था और साहस की सराहना की। यह घटना एक बार फिर यह दिखाती है कि संथारा केवल एक मृत्यु का साधन नहीं, बल्कि जीवन के अंतिम क्षणों में आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग है।
यह भी पढ़ें: Munir Ahmed को सीआरपीएफ से बर्खास्त किया गया, जानिए इस मामले की पूरी कहानी!