भारतीय Air Force (IAF) के प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने हाल ही में रक्षा परियोजनाओं में हो रही देरी को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उनका कहना है कि रक्षा उपकरणों के निर्माण और डिलीवरी में लगातार हो रही देरी Air Force की तैयारियों को प्रभावित कर रही है। उन्होंने यह भी बताया कि अब तक कोई भी बड़ी परियोजना समय पर पूरी नहीं हुई है, जिससे सैन्य क्षमता पर असर पड़ रहा है। एयर चीफ ने स्वदेशी उत्पादन में तेजी लाने और निजी क्षेत्र की भागीदारी को ज़रूरी बताया, ताकि वायुसेना की जरूरतें समय पर पूरी की जा सकें।
देरी से प्रभावित हो रही है वायुसेना की तैयारियाँ
एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने हाल ही में बताया कि स्वदेशी हथियार प्रणालियों के विकास और उत्पादन में लगातार देरी हो रही है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि अब तक कोई भी रक्षा परियोजना अपने निर्धारित समय पर पूरी नहीं हुई है। इस वजह से भारतीय Air Force की परिचालन क्षमता और तैयारियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। समय पर हथियार और उपकरण न मिलने से वायुसेना की ताकत कमजोर हो रही है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है। उन्होंने उत्पादन प्रक्रिया में तेजी लाने और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
तेजस विमान की डिलीवरी में देरी
तेजस लड़ाकू विमान की डिलीवरी में लगातार देरी Air Force के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। एयर चीफ मार्शल सिंह ने स्पष्ट किया है कि 2009-2010 में ऑर्डर किए गए 40 तेजस विमानों की पहली खेप अभी तक वायुसेना को नहीं मिली है, जिससे सैन्य तैयारियों पर प्रभाव पड़ा है। उन्होंने इस देरी को गंभीर समस्या बताया और कहा, “तकनीक में देरी का मतलब है तकनीक से इनकार।” यह बयान साफ करता है कि अगर समय पर तकनीकी विकास और सप्लाई नहीं हुई तो देश की सुरक्षा कमजोर पड़ सकती है। तेजस विमान स्वदेशी रक्षा उत्पादन का अहम हिस्सा है, इसलिए इसकी डिलीवरी में तेजी लाना आवश्यक है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी की आवश्यकता
एयर चीफ मार्शल सिंह ने सुझाव दिया कि रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की अपनी सीमाएँ हैं और उत्पादन चुनौतियों से निपटने के लिए निजी उद्योग को शामिल करना आवश्यक है।
Air Force प्रमुख के इन बयानों से स्पष्ट है कि रक्षा परियोजनाओं में समय पर डिलीवरी और उत्पादन की गति बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकारी और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा, ताकि देश की सुरक्षा तैयारियाँ मजबूत हों और आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।
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